सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना बाजू ऐ कातिल में है।।
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।।
इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज देखेंगे।
जब अपनी ही जमीं होगी व अपना आसमां होगा।।
खून और पसीने में बड़ा अन्तर होता है।
पत्थर और नगीने में बड़ा अंतर होता है।।
मुर्दा भेड़ों की तरह उम्र बिताने वालों।
सांस लेने और जीने में बड़ा अंतर होता है।।
देश प्रेम में धीरे धीरे जलना अच्छा लगता है।
खुद ही कहना खुद ही सुनना अच्छा लगता है।।
कुछ भी खास नहीं है मुझमें फिर भी जाने क्यों।
भीड़ से हटकर तन्हा चलना अच्छा लगता है।।
मखमल के अब नर्म गलीचे चुभने लगते हैं।
वतन की खातिर धूप में चलना अच्छा लगता है।।
बहती नदी की धार से ठण्डी हवा आती तो है।
नाव जर्जर ही सही मगर लहरों से टकराती तो है।।
एक चिंगारी कहीं से ढूंढकर लाओ तो तुम।
इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।।
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